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मंदिर की सीढियों पे बैठे कुछ लोग बतिया रहे थे भ्रष्टाचार तो दानव का रूप लेते जा रहा है . मंदिर के अहाते में गमछा बिछा पंडी जी सबकी बाते सुन रहे थे. दानव का नाम सुनते हिन् उनके शिखा में स्पार्किंग हुई और वो सावधान की मुद्रा में खड़ी हो गयी .पंडी जी के मन में पहला ख्याल आया – इस दानव का कुछ करना होगा, इससे निपटाना होगा .
दानव से कोई मानव निपट नहीं सकता, इसके लिए भगवन की हिन् शरण में जाना होगा.
अगले ही दिन पंडी जी ने मंदिर के श्याम पट्ट, जिसपे वे सूर्योदय कब होगा, सूर्यास्त कब होगा, एकादशी कब है, लिख के जनता को बताया करते थे, पे लिख के ऐलान किया की वे भ्रष्टाचार के दानव से निपटने के लिए हवन करने वाले हैं.
पंडित जी की सूचना जंगल के आग की तारा चारो तरफ फ़ैल गयी. लोग भ्रष्टाचार से निपटने के लिए चंदा भेजने लगे. लोगों में काफी जोश, उत्साह और एकता देखने को मिल रही थी. जो या तो इंडिया – पाकिस्तान क्रिकेट मैच के वक़्त दिखती है या लड़ाई के.
शाम तक मंदिर के दोनों दान पेटियों का पेट गले तक इस तरह से भर गया की अब वे डकार तक नहीं ले सकतीं थीं . पंडी जी मन ही मन खुश हुए अब तो इस दानव की खैर नहीं. अगले दिन तड़के ही पूजा पाठ शुरू करने केलिए, वे जल्दी ही विश्राम करने चले गए.
अगले दिन सुबह सो के उठने पे देखा , दान की एक ”पेटी” गायब है. पंडी जी ने अपना सर पिट लिया, परिणाम स्वरुप बाल रहित सर लाल हो गया.
खैर जाने वालों का अफ़सोस नहीं किया जाता है, जितना होता है उसी में काम चलाया जाता है, हवन सामग्री लेन के लिए एक दल नियुक्त हुआ. और इस प्रकार हवन प्रारंभ हुआ. हवन में बहुत से लोगो ने बाद चढ़ के हिस्सा लिया. हवन सफलता पूरक संपन्न हुआ.
हवन के बाद, उसमे ख़रीदे गए सामान और उसमे खर्च किये गए पैसे की फेरहिस्त बनायीं जाने लगी. नौ का सामान नब्बे में आया देख के पंडी जी ऐसे खफा हुए जैसे ममता दीदी मनमोहन जी की सरकार से होतीं हैं.
पंडी जी सोंच रहे थे – “क्या इस भ्रष्टाचार के दानव से मानव लड़ सकता है?
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