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यूपीए सरकार के तीन साल पुरे हो गए , इससे बड़ी ख़ुशी और आश्चर्य की बात क्या होगी ? सब चिल्ला रहे हैं की पेट्रोल के दाम बढ़ गए . अरे ! ये भी तो देखो, पहले एल लीटर पेट्रोल से कारें सात किलो मीटर चलती थीं अब तो पच्चीस पच्चीस किलो मीटर चलने लगीं हैं. बाइक वाले पहले एक किलो मीटर में तीस पैंतीस किलो मीटर जाते थे, अब तो साठ सत्तर किलोमीटर तक हांक लेते हैं. अजी औसत निकल के देख लो, उस हिसाब से महंगाई बढ़ी कहा हैं?
मानो ना मानो ये सरकार सभी को सामान नजर से देखती है. क्या इन्सान? क्या मशीन? सभी को. पानी की इतनी किल्लत है. इंसानों को ठीक से पानी मय्यसर नहीं हो रहा है और आप अपने गाड़ियों को भर पेट पेट्रोल पिलाइयेगा . ये सरकार की “मशिनियत” हीं तो है की पेट्रोल महंगा कर दिया. ज्यादा पेट्रोल पीके इन गाड़ियों का मन न बढ़ जाये. दूसरी बात महँगी होने के कारण आप गाडी में उतना ही पेट्रोल न डालेंगे, जितना अपने पेट में राशन पानी जाता है. यानि इन्सान और मशीन सब बराबर है सरकार के नज़रों में . और आप हम हैं की समझते हीं नहीं बात को, पहुँच जाते हैं जंतर मंतर.
गैस महँगी हो गयी है. अजी तो गलत क्या है? सस्ती गैस घर में रख के क्या कीजियेगा. राशन है घर में पकाने के लिए? जो गैस गैस चिल्ला रहे हैं . सबके कहने से क्या होता है की जनता की बुरा हाल है. कहने से क्या होता है? फैक्ट देखिये .
गरमी इतनी भयंकर पड़ रही है. आदमी का जीना मुहल हो रहा है. अब ये मत कह दीजियेगा की भयंकर गर्मी पड़ने के पिच्छे यु पी ए का हाथ है. गर्मी इतनी है की बिजली के भी पसीने छुट रहे हैं. वो भी परेशां होके कट जाती है. बिजली रहेगी तो आप कूलर, ए सी , पंखा चलाइयेगा. बिजली की खपत बढ़ेगी ग्लोबल वार्मिंग होगा. आपको-हमको तो अपनी अपनी पढ़ी है. सरकार को तो साडी दुनिया जहान का सोंचना है. हमारी तरह ‘सेल्फिश ‘ थोड़े न है वो.
पेट्रोल के मुकाबले डीजल सस्ता है की नहीं है? अब आप लक्जरी गाडी नहीं खरीद सकते तो गलती किसकी है ? आपकी या सरकार की?
अरे ! सुनिए ! जा कहाँ रहे हैं? लक्जरी गाडी बाद में खरीदिएगा. पहले दो जून की रोटी खरीदने की कोशिश करिए. गाडी खरीदना तो बहुत आसन है. कोई भी बैंक लोन दे देगा. रोटी केलिए लोन मिलते सुना है? नहीं ना?
बच्चों को गप्पे मरते देख बहुत डांट लगाया करते थे, खाली बात करके ही पेट भरोगे क्या? अगर ऐसा है तो करिए न जी भर के बात फ़ोन पे. सरकार ने फ़ोन कॉल रेट कितना सस्ता कर दिया है. सरकार पे ये बेबुनियाद इलज़ाम लगाना कहीं से बाजिब नहीं है की सरकार हर चीज़ को महंगा कर रही है .
पहले कम आनाज सड़ता था, सरकार ने प्रगति की अब ज्यादा सड़ रहा है. पहले छोटे घोटाले होते थे, सरकार की प्रगति देखिये बड़े बड़े हो रहे हैं. घोटाले बाजों पे बरसों बरस मुकदमे चलते थे, सजा नहीं हो पति थी. अब तो एक लाख के घुस पे ही चार साल की सजा करवा दी. ये क्या कम प्रगतिशील बात है ? बोलिए?
पहले सरकार के फैसले मैडम की इच्छा से होते थे, अब दीदी की इच्छा से हॉटे हैं. पहले एक डॉलर में पैतालीस रूपया आता था, अब पचपन आ रहा है. पहले फाँसी के लिए एक आतंकवादी कैद था, अब दो दो कैद हैं.
ये सब क्या है ? प्रगति ही तो है. और कितनी प्रगति चाहिए जी आपको?
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