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टीम अन्ना जिस तरह से गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य देती आई है, वो किसी भी कोण से काबिल-ए-तारीफ नहीं है. आन्दोलन में शामिल होने वाली भारतीय जनता को टीम अन्ना द्वारा “भीड़” कहना, बहुत ही निंदनीय और अशोभनीय है. देश की जनता हर कोने से आपको अपना सहयोह और समर्थन कर रही है, और आप की नज़र में वो सिर्फ भीड़ है. लो लानत है हमें आपको समर्थन करने पर. मुझे ऐसा लग रहा है की जनलोकपाल को लेकर होने वाला आन्दोलन, अब देश का आन्दोलन न रह कर, टीम अन्ना का आन्दोलन रह गया है. साथ हीं ये भी महसूस हो रहा है की ये अब खुद के तुस्टीकरण के लिए चलाया जा रहा है. आन्दोलन अपनी पवित्रता खोकर बयानबाज़ी और फोकसबाज़ी तक सिमित होती जा रही है. जब आप अपनी टीम के सदस्यों को एकजुट नहीं रख सकते, तो देश की जनता को एक जुट रखने का दावा किस आधार पर कर रहे हैं. टीम अन्ना का एक सदस्य कुछ बोल रहा है तो दूसरा कुछ और बोल रहा है. हाथ की पांचो उंगलियाँ बराबर नहीं होती हैं या पांच लोगों के विचार एक से नहीं होते हैं. इस कथन की ओट में आप छिप नहीं सकते हैं. क्यों की ना तो आप उँगलियों का जीवविज्ञान पढ़ा रहे हैं और ना हीं लोगो की सोंच का मनोविज्ञान. आप एक कानून बनाने के लिए आन्दोलन कर रहें हैं, जो आने वाले अनंत वर्षों के लिए देश की दशा और दिशा तय करेगा. तो क्या पहले आपको अपनी सोंच एक नहीं करनी चाहिए? अगर आपको लगता है की आन्दोलन में पहुँचने वाली जनता भीड़ है तो आप गलत सोंच रहे हैं. और अगर आप मानते हैं की आपकी सोंच सही है तो आप कोई राजा रामचंद्र नहीं हैं की आपके एक आह्वान पे सारे लोग लंका में कूद जांयें. अहिंसा किसी को लाठी मारने या जान से मार देने को हीं नहीं कहते हैं. आपकी बात किसी को आहत करे तो, वो भी हिंसा हीं है. तो फिर किस आधार पर आप आन्दोलन को अहिंसक बता रहे हैं. टीम अन्ना के इस वक्तव्य से जनता के आत्मसम्मान को ठेस पहुचती हैं, मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंची हैं. मैं कोई भीड़ नहीं हूँ, अतः मैं इस आन्दोलन का समर्थन करना बंद करता हूँ. टीम अन्ना को अपने वक्तव्य के लिए जनता से माफ़ी माँगनी चाहिए. क्यों की टीम अन्ना के एक सदस्य के लहजे में ही बोले तो ये उनको खुद सोचना है की उनको भीड़ का साथ चाहिए या जनता का
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