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कुत्तों का लिंगानुपात – (A)

तरकस
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बरसात का मौसम इंसानों के लिए हीं नहीं जानवरों के लिए भी मस्ती लेकर आता है.

मुझे याद है, जब में छोटा था, बरसात के मौसम में जब कुत्तों का झुण्ड देख के उन्हें भगाने लिए लिए पत्थर उठाया था तो एक बुजुर्ग ने डांट लगाई – क्या कर रहे हो? बरसात का मौसम है, सारे कुत्ते बौराए रहते हैं, काट लेंगे.

खैर, तब तो समझ नहीं आया था की क्यों बौराए रहते हैं. बाद में समझ आया की यहो वो वक़्त होता है जब उनकी कामेक्षा चरम पे होती हैं. या यूँ कहें की सिर्फ बरसात में हीं वो सहवास के लिए तैयार होते हैं. यही कारण है की उनकी जनसँख्या इतनी कंट्रोल में हैं. इंसान तो आधे सेकेण्ड में ही “गेट रेडी फ़ॉर एक्शन” हो जाता है, और तडातड तडातड जनसँख्या बढाता है.

बरसात का मौसम साल में एक बार आता है, और टेंशन की बात तो ये होती है की अगर ये चला गया तो फिर अगले साल की बरसात तक का इंतजार करना होगा. इसलिए लिए सारे कुत्ते इस फिराक में रहते हैं की उनको लाखों का सावन बेकार ना चला जाये.

एक ‘फिमेल’ के पीछे दसियों लगे रहते हैं. कम्पीटीशन बहुत टफ्फ होता है. सारे कुत्तों को पता होता है की कोई एक ही “टॉप” करेगा और काम सुख का आनंद प्राप्त करेगा. तो टॉप करने के लिए सारे के सारे आपस में भौं भौं मचाये रहते हैं. खैर उनकी कोई गलती नहीं है. “विषय रस” को सबसे निम्न रस माना गया है, लेकिन आनंद तो इसी में आता है सभी को.

कुत्तों को भी पता है, उनका लिंगानुपात एक के मुकाबले दस का है. जो उनके साथ बहुत नाइंसाफी हैं, समूचे जीव जगत में सिर्फ उनकी के साथ ऐसा लिंगानुपात क्यों हुआ, जाँच का प्रश्न हो सकता है.

पर उनके लिए एक संतोष की बात है. इन्सान जिस तरह से कन्या भ्रूण हत्या कर रहा है, कुछ ही वक़्त में इंसानों का लिंगानुपात भी एक के मुकाबाले ग्यारह होने वाला है. फिर ये बात कुत्तों को राहत पहुंचा सकती है, की ऐसे विषम लिंगानुपात का दंश सिर्फ वे हीं नहीं झेल रहे हैं.

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